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Wednesday 29 January 2014

EFFECT OF RAHU IN HOROSCOPE

EFFECT OF RAHU IN HOROSCOPE

 Dear friends in this article we are telling you that what effects Planet RAHU gives in various houses in horoscope:

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When Rahu afflicts closely the mid-point of a house which contains a mooltrikona sign and the dispositor is weak, impact in various houses is as under :


First House:

Physical retardation and acute health problems, problems in marital life, problems to male children and father.

Second House:

Disintegration of family, divorce, loss of status, wealth and reputation, intestinal problems and problems to father.

Third House:

Sinful deeds, lying, disturbed marital life, retarded physical growth, problems to father and earnings through foul means.

Fourth House:

Destroys domestic peace and professional growth, causes accidents and inauspicious happenings, wasteful expenses and losses.

Fifth House:

Loss of semen, lack of progeny, health problems to father, elder brother and self. Earnings through undesirable means.

Sixth House:

Chronic illness, stomach ulcer, acidity, losses through thefts and fire, threat of imprisonment, disputes and disturbed family life.
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Seventh House:

Extra marital relationships, ill health to self and spouse, venereal diseases, skin diseases, problems to brothers and resorting to corrupt practices and gambling.

Eighth House:

Accidents, involvement in scandals, family disputes, separation, piles, eye troubles and loss of domestic peace.

Ninth House:

Problems to self, father, children and younger brothers. Makes one totally immoral. One resorts to vices and gambling.

Tenth House:

Causes termination due to use of corrupt practices, destroys assets, problems of blood pressure and makes the native a liar.

Eleventh House:

Income through corrupt practices, spoils health of spouse and troubled marital relations. Native uses unfair means and operates in a deceptive way.

Twelfth House:

Makes one an addict and gambler, threat of imprisonment, losses and expenses, problem of hypertension, thoroughly troubled domestic peace.
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Transit Influence of Rahu

Transit influence of Rahu is more or less indicative of troubles and tensions. Transit relationship through close aspect/conjunction with weak planet is felt when the longitudinal difference is five degrees and with the grave situation at the time of exact aspect/conjunction.
The tension/trouble starts when the relationship is formed and ends when it separates from the close conjunction/aspect. In the case of strong and well placed natal/transit planets, the longitudinal distance of conjunction/aspect is of only one degree. The impact is felt with respect to the following :
1 . The significations of the houses where mooltrikona signs of the troubled planets are placed.
2. The general significations of the afflicted planet.
3. The general significations of the house where the afflicted planet is placed.
4. The general significations of the house of conjunction and the houses aspected if the conjunction is with the most effective point of a house.
The impact is greater when Rahu causing transit conjunction is placed in dusthanas and when the planets/houses involved are weak both in natal and transit charts.
Rahu's close involvement with Venus gives an urge for carnal pleasures in the early stages of life and enjoyments through smoking and drinking, intoxication through other means, etc. Rahu's close involvement with the most effective points of the seventh, third, fifth and eighth houses takes one to premarital carnal pleasures and love affairs only for physical gratification. Rahu's close affliction to both Mercury and the weak Moon in the eighth or twelfth houses makes one a drug addict. I am sure readers will derive benefits from this in delineating the postures of Rahu in a particular nativity more clearly.

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Ramcharitmanas ke Siddh Mantra

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रामचरितमानस के चामत्कारिक मंत्र 

 

हिन्दू धर्म और संस्कृति में रामचरितमानस जन जन में व्याप्त है , लेकिन बहुत कम लोगो को पता है कि रामचरितमान कि सभी चौपाइया प्रभावशाली मंत्र भी है ! सभी प्रकार कि समस्याओ के समाधान के लिए इनका प्रयोग किया जा सकता है! इन मंत्रो का प्रयोग यदि नवरात्र, दीपावली या  किसी पर्व के दिन किया जाये तो इनका फल और अधिक मिलता है.यहाँ हम हमारे सभी पाठको के लिए रामचरितमानस के ये सिध्ह और चामत्कारिक मंत्र दे रहे है :
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श्री रामचरित मानस के सिद्ध 'मन्त्र'

नियम-

मानस के दोहे-चौपाईयों को सिद्ध करने का विधान यह है कि किसी भी शुभ दिन की रात्रि को दस बजे के बाद अष्टांग हवन के द्वारा मन्त्र सिद्ध करना चाहिये। फिर जिस कार्य के लिये मन्त्र-जप की आवश्यकता हो, उसके लिये नित्य जप करना चाहिये। वाराणसी में भगवान् शंकरजी ने मानस की चौपाइयों को मन्त्र-शक्ति प्रदान की है-इसलिये वाराणसी की ओर मुख करके शंकरजी को साक्षी बनाकर श्रद्धा से जप करना चाहिये।

अष्टांग हवन सामग्री

१॰ चन्दन का बुरादा, २॰ तिल, ३॰ शुद्ध घी, ४॰ चीनी, ५॰ अगर, ६॰ तगर, ७॰ कपूर, ८॰ शुद्ध केसर, ९॰ नागरमोथा, १०॰ पञ्चमेवा, ११॰ जौ और १२॰ चावल।

जानने की बातें-

जिस उद्देश्य के लिये जो चौपाई, दोहा या सोरठा जप करना बताया गया है, उसको सिद्ध करने के लिये एक दिन हवन की सामग्री से उसके द्वारा (चौपाई, दोहा या सोरठा) १०८ बार हवन करना चाहिये। यह हवन केवल एक दिन करना है। मामूली शुद्ध मिट्टी की वेदी बनाकर उस पर अग्नि रखकर उसमें आहुति दे देनी चाहिये। प्रत्येक आहुति में चौपाई आदि के अन्त में 'स्वाहा' बोल देना चाहिये।
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प्रत्येक आहुति लगभग पौन तोले की (सब चीजें मिलाकर) होनी चाहिये। इस हिसाब से १०८ आहुति के लिये एक सेर (८० तोला) सामग्री बना लेनी चाहिये। कोई चीज कम-ज्यादा हो तो कोई आपत्ति नहीं। पञ्चमेवा में पिश्ता, बादाम, किशमिश (द्राक्षा), अखरोट और काजू ले सकते हैं। इनमें से कोई चीज न मिले तो उसके बदले नौजा या मिश्री मिला सकते हैं। केसर शुद्ध ४ आने भर ही डालने से काम चल जायेगा।
हवन करते समय माला रखने की आवश्यकता १०८ की संख्या गिनने के लिये है। बैठने के लिये आसन ऊन का या कुश का होना चाहिये। सूती कपड़े का हो तो वह धोया हुआ पवित्र होना चाहिये।
मन्त्र सिद्ध करने के लिये यदि लंकाकाण्ड की चौपाई या दोहा हो तो उसे शनिवार को हवन करके करना चाहिये। दूसरे काण्डों के चौपाई-दोहे किसी भी दिन हवन करके सिद्ध किये जा सकते हैं।
सिद्ध की हुई रक्षा-रेखा की चौपाई एक बार बोलकर जहाँ बैठे हों, वहाँ अपने आसन के चारों ओर चौकोर रेखा जल या कोयले से खींच लेनी चाहिये। फिर उस चौपाई को भी ऊपर लिखे अनुसार १०८ आहुतियाँ देकर सिद्ध करना चाहिये। रक्षा-रेखा न भी खींची जाये तो भी आपत्ति नहीं है। दूसरे काम के लिये दूसरा मन्त्र सिद्ध करना हो तो उसके लिये अलग हवन करके करना होगा।
एक दिन हवन करने से वह मन्त्र सिद्ध हो गया। इसके बाद जब तक कार्य सफल न हो, तब तक उस मन्त्र (चौपाई, दोहा) आदि का प्रतिदिन कम-से-कम १०८ बार प्रातःकाल या रात्रि को, जब सुविधा हो, जप करते रहना चाहिये।
कोई दो-तीन कार्यों के लिये दो-तीन चौपाइयों का अनुष्ठान एक साथ करना चाहें तो कर सकते हैं। पर उन चौपाइयों को पहले अलग-अलग हवन करके सिद्ध कर लेना चाहिये।
१॰ विपत्ति-नाश के लिये
"राजिव नयन धरें धनु सायक। भगत बिपति भंजन सुखदायक।।"
२॰ संकट-नाश के लिये
"जौं प्रभु दीन दयालु कहावा। आरति हरन बेद जसु गावा।।
जपहिं नामु जन आरत भारी। मिटहिं कुसंकट होहिं सुखारी।।
दीन दयाल बिरिदु संभारी। हरहु नाथ मम संकट भारी।।"
३॰ कठिन क्लेश नाश के लिये
"हरन कठिन कलि कलुष कलेसू। महामोह निसि दलन दिनेसू॥"
४॰ विघ्न शांति के लिये
"सकल विघ्न व्यापहिं नहिं तेही। राम सुकृपाँ बिलोकहिं जेही॥"
५॰ खेद नाश के लिये
"जब तें राम ब्याहि घर आए। नित नव मंगल मोद बधाए॥"
६॰ चिन्ता की समाप्ति के लिये
"जय रघुवंश बनज बन भानू। गहन दनुज कुल दहन कृशानू॥"
७॰ विविध रोगों तथा उपद्रवों की शान्ति के लिये
"दैहिक दैविक भौतिक तापा।राम राज काहूहिं नहि ब्यापा॥"
८॰ मस्तिष्क की पीड़ा दूर करने के लिये
"हनूमान अंगद रन गाजे। हाँक सुनत रजनीचर भाजे।।"
९॰ विष नाश के लिये
"नाम प्रभाउ जान सिव नीको। कालकूट फलु दीन्ह अमी को।।"
१०॰ अकाल मृत्यु निवारण के लिये
"नाम पाहरु दिवस निसि ध्यान तुम्हार कपाट।
लोचन निज पद जंत्रित जाहिं प्रान केहि बाट।।"
११॰ सभी तरह की आपत्ति के विनाश के लिये / भूत भगाने के लिये
"प्रनवउँ पवन कुमार,खल बन पावक ग्यान घन।
जासु ह्रदयँ आगार, बसहिं राम सर चाप धर॥"
१२॰ नजर झाड़ने के लिये
"स्याम गौर सुंदर दोउ जोरी। निरखहिं छबि जननीं तृन तोरी।।"
१३॰ खोयी हुई वस्तु पुनः प्राप्त करने के लिए
"गई बहोर गरीब नेवाजू। सरल सबल साहिब रघुराजू।।"
१४॰ जीविका प्राप्ति केलिये
"बिस्व भरण पोषन कर जोई। ताकर नाम भरत जस होई।।"
१५॰ दरिद्रता मिटाने के लिये
"अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के। कामद धन दारिद दवारि के।।"
१६॰ लक्ष्मी प्राप्ति के लिये
"जिमि सरिता सागर महुँ जाही। जद्यपि ताहि कामना नाहीं।।
तिमि सुख संपति बिनहिं बोलाएँ। धरमसील पहिं जाहिं सुभाएँ।।"
१७॰ पुत्र प्राप्ति के लिये
"प्रेम मगन कौसल्या निसिदिन जात न जान।
सुत सनेह बस माता बालचरित कर गान।।'
१८॰ सम्पत्ति की प्राप्ति के लिये
"जे सकाम नर सुनहि जे गावहि।सुख संपत्ति नाना विधि पावहि।।"
१९॰ ऋद्धि-सिद्धि प्राप्त करने के लिये
"साधक नाम जपहिं लय लाएँ। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएँ।।"
२०॰ सर्व-सुख-प्राप्ति के लिये
सुनहिं बिमुक्त बिरत अरु बिषई। लहहिं भगति गति संपति नई।।
२१॰ मनोरथ-सिद्धि के लिये
"भव भेषज रघुनाथ जसु सुनहिं जे नर अरु नारि।
तिन्ह कर सकल मनोरथ सिद्ध करहिं त्रिसिरारि।।"
२२॰ कुशल-क्षेम के लिये
"भुवन चारिदस भरा उछाहू। जनकसुता रघुबीर बिआहू।।"
२३॰ मुकदमा जीतने के लिये
"पवन तनय बल पवन समाना। बुधि बिबेक बिग्यान निधाना।।"
२४॰ शत्रु के सामने जाने के लिये
"कर सारंग साजि कटि भाथा। अरिदल दलन चले रघुनाथा॥"
२५॰ शत्रु को मित्र बनाने के लिये
"गरल सुधा रिपु करहिं मिताई। गोपद सिंधु अनल सितलाई।।"
२६॰ शत्रुतानाश के लिये
"बयरु न कर काहू सन कोई। राम प्रताप विषमता खोई॥"
२७॰ वार्तालाप में सफ़लता के लिये
"तेहि अवसर सुनि सिव धनु भंगा। आयउ भृगुकुल कमल पतंगा॥"
२८॰ विवाह के लिये
"तब जनक पाइ वशिष्ठ आयसु ब्याह साजि सँवारि कै।
मांडवी श्रुतकीरति उरमिला, कुँअरि लई हँकारि कै॥"
२९॰ यात्रा सफ़ल होने के लिये
"प्रबिसि नगर कीजै सब काजा। ह्रदयँ राखि कोसलपुर राजा॥"
३०॰ परीक्षा / शिक्षा की सफ़लता के लिये
"जेहि पर कृपा करहिं जनु जानी। कबि उर अजिर नचावहिं बानी॥
मोरि सुधारिहि सो सब भाँती। जासु कृपा नहिं कृपाँ अघाती॥"
३१॰ आकर्षण के लिये
"जेहि कें जेहि पर सत्य सनेहू। सो तेहि मिलइ न कछु संदेहू॥"
३२॰ स्नान से पुण्य-लाभ के लिये
"सुनि समुझहिं जन मुदित मन मज्जहिं अति अनुराग।
लहहिं चारि फल अछत तनु साधु समाज प्रयाग।।"
३३॰ निन्दा की निवृत्ति के लिये
"राम कृपाँ अवरेब सुधारी। बिबुध धारि भइ गुनद गोहारी।।
३४॰ विद्या प्राप्ति के लिये
गुरु गृहँ गए पढ़न रघुराई। अलप काल विद्या सब आई॥
३५॰ उत्सव होने के लिये
"सिय रघुबीर बिबाहु जे सप्रेम गावहिं सुनहिं।
तिन्ह कहुँ सदा उछाहु मंगलायतन राम जसु।।"
३६॰ यज्ञोपवीत धारण करके उसे सुरक्षित रखने के लिये
"जुगुति बेधि पुनि पोहिअहिं रामचरित बर ताग।
पहिरहिं सज्जन बिमल उर सोभा अति अनुराग।।"
३७॰ प्रेम बढाने के लिये
सब नर करहिं परस्पर प्रीती। चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीती॥
३८॰ कातर की रक्षा के लिये
"मोरें हित हरि सम नहिं कोऊ। एहिं अवसर सहाय सोइ होऊ।।"
३९॰ भगवत्स्मरण करते हुए आराम से मरने के लिये
रामचरन दृढ प्रीति करि बालि कीन्ह तनु त्याग ।
सुमन माल जिमि कंठ तें गिरत न जानइ नाग ॥
४०॰ विचार शुद्ध करने के लिये
"ताके जुग पद कमल मनाउँ। जासु कृपाँ निरमल मति पावउँ।।"
४१॰ संशय-निवृत्ति के लिये
"राम कथा सुंदर करतारी। संसय बिहग उड़ावनिहारी।।"
४२॰ ईश्वर से अपराध क्षमा कराने के लिये
" अनुचित बहुत कहेउँ अग्याता। छमहु छमा मंदिर दोउ भ्राता।।"
४३॰ विरक्ति के लिये
"भरत चरित करि नेमु तुलसी जे सादर सुनहिं।
सीय राम पद प्रेमु अवसि होइ भव रस बिरति।।"
४४॰ ज्ञान-प्राप्ति के लिये
"छिति जल पावक गगन समीरा। पंच रचित अति अधम सरीरा।।"
४५॰ भक्ति की प्राप्ति के लिये
"भगत कल्पतरु प्रनत हित कृपासिंधु सुखधाम।
सोइ निज भगति मोहि प्रभु देहु दया करि राम।।"
४६॰ श्रीहनुमान् जी को प्रसन्न करने के लिये
"सुमिरि पवनसुत पावन नामू। अपनें बस करि राखे रामू।।"
४७॰ मोक्ष-प्राप्ति के लिये
"सत्यसंध छाँड़े सर लच्छा। काल सर्प जनु चले सपच्छा।।"
४८॰ श्री सीताराम के दर्शन के लिये
"नील सरोरुह नील मनि नील नीलधर श्याम ।
लाजहि तन सोभा निरखि कोटि कोटि सत काम ॥"
४९॰ श्रीजानकीजी के दर्शन के लिये
"जनकसुता जगजननि जानकी। अतिसय प्रिय करुनानिधान की।।"
५०॰ श्रीरामचन्द्रजी को वश में करने के लिये
"केहरि कटि पट पीतधर सुषमा सील निधान।
देखि भानुकुल भूषनहि बिसरा सखिन्ह अपान।।"


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Lagna and Mercury Effect

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 विभिन्न लग्न और बुध का प्रभाव

 लाल किताब ज्योतिष
आचार्य पीयूष वशिष्ठ
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बुध को ज्योतिष मे संचार का ग्रह कहा गया है,यह सूर्य के आगे पीछे रहकर सांसारिक गतिविधियों को प्रकाशित करने का काम करता है,नये ग्रह के रूप मे होने के कारण इसके अन्दर बालपन की छवि भी देखी जाती है। नये ग्रह का तात्पर्य जो सूर्य के पास है वह नये ग्रह के रूप मे और जो ग्रह सूर्य से दूर है वह पुराने यानी बुजुर्ग ग्रह के रूप मे जाना जाता है। बुध पीढी बनाने का कारक भी है कानून को भी प्रसारित करने वाला है अपने को जमीन पर लाने के बाद हरी भरी प्रकृति को भी देने वाला है। मनुष्य जाति मे बुध का रूप कन्या के रूप मे भी देखा जाता है और बुजुर्ग बुध को हिजडे के रूप मे भी देखा जाता है। बुध गणित का कारक भी है और जो व्यक्ति बुध से प्रभावित होता है उसके लिये आकलन करना और जोडना घटाना आदि अच्छी तरह से ज्ञात होता है। बुध का स्वभाव अच्छे के साथ अच्छा है और बुरे के साथ बुरा।
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मेष राशि

 मेष राशि के लिये बुध प्रदर्शित करने की भावना को और कर्जा दुश्मनी बीमारी से जूझने के लिये अपनी गति देता है,बुध मेष राशि मे बलवान होने पर शौर्य और पराक्रम को प्रसारित करेगा और कमजोर होने पर कन्या सन्तान की अधिकता देगा और शुक्र को बरबाद करेगा।

वृष राशि

वृष राशि मे बुध कुटुम्ब के व्यक्ति के साथ आजीवन साथ देने के लिये बहिन बुआ बेटी के लिये अपनी मुद्रा को प्रसारित करता है साथ ही फ़ैसन पहिनावा आदि से धन प्रदान करवाता है चेहरे की सुन्दरता से मजबूत होने पर कोमलता देता है और कमजोर होने पर चेहरे पर झुर्रियां आदि देने के लिये माना जाता है। बुध वृष राशि मे बुद्धि का कारक भी है और यह अपने असर के कारण मजबूत होने पर कर्जा दुश्मनी बीमारी नौकरी शिक्षा आदि मे धन आदि के लिये अपनी तस्वीर अच्छी प्रसारित करता है वहीं कमजोर होने पर यह मन को एक प्रकार से विदीर्ण करने के बाद परिवार समाज घर सन्तान आदि के क्षेत्र मे कोई न कोई कमी खोजने की आदत देता है और अच्छे के साथ भी बुरा बर्ताव करने तथा बुरे के साथ भी अच्छा बर्ताव करने के लिये माना जाता है अक्सर इस राशि वाले लोगो के लिये बुध कमजोर होने पर घर की स्त्री संतान को बरबाद करने के लिये ही माना जाता है।

मिथुन राशि

मिथुन राशि के लिये बुध शरीर जाति और कुल की समीक्षा के लिये देखा जाता है अगर मजबूत है तो लगनेश होने के कारण राजयोग भी दे सकता है कमन्यूकेशन और मीडिआ आदि के क्षेत्र मे अपनी मजबूती से नाम और प्रभाव भी रोशन करता है वही अगर कमजोर है तो वह चुगली करने और एक दूसरे को लडवाने तथा फ़ूट डालने के लिये भी जाना जाता है अक्सर कमजोर बुध के लोग ही कूटनीति की भाषा का प्रयोग करते है और शांति मे अशांति का प्रयोग करते है। इस राशि वाले लोगो के लिये चौथे भाव का मालिक होने से माता मन मकान घर की शांति और वातावरण के लिये वाहन आदि की जानकारी के लिये किये जाने वाले व्यापार और इसी प्रकार के कारणो के लिये भी जाना जाता है इस राशि वाले मजबूत बुध होने कर कर्जा देकर ब्याज कमाने घर को बनवा कर उससे किराया लेने नौकरी आदि के लिये कन्सलटेंसी जैसी सेवा बनाकर दलाली से नौकरी आदि दिलवाने के लिये भी अपना काम करता है। वहीं कमजोर होने पर घर मे कन्या संतान या बहिन बुआ बेटी के दखल से माहौल को दूषित करने के लिये भी जाना जाता है। मंगल के साथ चौथे भाव मे युति देने पर या तो बकरी पालन का धंधा करवा देता है या पक्षी जैसे मुर्गी फ़ार्म आदि बनवा कर रोजगार देने का कारक बन जाता है।चन्द्रमा के साथ मिलकर कृषि आदि के क्षेत्र से हरी सब्जियों का काम करवाना शुरु कर देता है राहु के साथ होने पर बैंकिंग आदि के क्षेत्र के प्रति कम्पयूटर सोफ़टवेयर आदि का काम करवाने के बाद बेव साइट का व्यवसाय करने के बाद धन की उपलब्धि करवाता है।

कर्क राशि

कर्क राशि के लिये बुध का स्थान बाहरी सम्बन्धो और गुजरे हुये इतिहास को बताने की शक्ति देता है बारहवे भाव का कारक होने के कारण स्वार्थी कारणो से भावुकता को भी देता है और छोटे मामा या मौसी के जीवन साथी के कारणो मे अपने समय और धन को बरबाद करने के लिये भी माना जाता है मीडिआ आदि के क्षेत्र मे जाकर जनता की गतिविधियो और धन आदि की समीक्षा करने के लिये तथा गोलमेज सभा मे अपनी उपस्थिति को दर्ज करवाने के लिये भी माना जाता है।आसमानी जानकारी ग्रहो के बारे मे स्पष्ट विवरण भी मजबूत बुध के कारण ही समझने को मिलता है लेकिन कर्क राशि के लिये तीसरे भाव का मालिक होने के कारण जातक की पहिचान उन्ही कारणो मे जानी जाती है जो कारण ब्याज किराया किस्त देने का काम नौकरी आदि के लिये भागने का लोगो के लिये या तो इन कारणो को सुलझाने का काम करने की बात मानी जाती है या खुद ही इन्ही कारणो मे घिरे रहने की बात मानी जाती है।

सिंह राशि

सिंह राशि में बुध का स्थान नकारात्मक रूप से धन आमने सामने की सहायता राज्य या राजकीय क्षेत्र से मिलने वाले लोन या सबसिडी वाली सहायता के लिये जाना जाता है वही कमजोर होने पर गाली गलौज देना और बात बात मे कर्जा दुश्मनी बीमारी को पैदा करना माना जाता है या तो ग्यारहवे भाव का मालिक होने से लाभ देने वाला होता है या लगातार हानि देने वाला होता है लाभदायी होने के लिये एक बात और भी मानी जाती है कि अगर जातक की बडी बहिन है और उससे लगातार सम्बन्ध स्थापित है तो लाभ वाली बात को देखा जाता है और या तो बडी बहिन नही है या सम्बन्ध नही है तो लाभ की जगह पर हानि की बात मानी जा सकती है। बुध की सहायता से इस राशि वाले राजयोग को भी प्राप्त कर सकते है और बदनामी के कारणो को भी झेलने के लिये बुध के प्रभाव को समझ सकते है। चोटी रोटी और बेटी तीनो को समझना है तो सिंह राशि वाले इसका जबाब सही दे सकते है।
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कन्या राशि

कन्या राशि के लिये बुध अपनी योग्यता से सेवा वाले कामो मे नाम देने वाला बना देता है। बोलने की भाषा और व्यवहार से ही व्यक्ति की पहिचान को बना देता है और सेवा भावी होने से या तो बडे संस्थान देश समाज मे नाम देने वाला बन जाता है या राजयोग देकर जीवन को अपने समय मे उन्नति के लिये आगे कर देता है। माता के स्वभाव को या तो धार्मिक बना देता है या पैदा होने के बाद माता के अन्दर बदनामी पैदा करने वाले कारण पैदा कर देता है। यही बात पिता के लिये भी मानी जाती है।

तुला राशि

तुला राशि के लिये बुध हमेशा ही किसी न किसी प्रकार से बदनामी देने के लिये अपनी गति को प्रदान करता है नवे भाव का मालिक होने के कारण या तो कानून के क्षेत्र मे नाम देता है या समाज मे बडी इज्जत को देने वाला बन जाता है बिगडने पर यह घर के बहिन बुआ बेटी पर गलत असर डालता है और या तो उनके पारिवारिक जीवन को बिगाड देता है या बहिन बुआ बेटी को आजीवन झेलने के लिये घर मे ही रख देता है। मन के अन्दर देवी भक्ति की तरफ़ ध्यान को देता है और इन्ही कारको मे जैसे धर्म स्थानो मे देवी स्थानो की यात्रा करना लोगो के लिये कर्जा दुश्मनी बीमारी को दूर करने के लिये व्यवसाय आदि मे धन आदि की उधारी को प्राप्त करने के लिये देने के लिये भी माना जाता है तुला राशि के लिये बुध हमेशा धन की सहायता से दो बाते पैदा करता है एक तो जिसे धन अपने हाथ से सहायता के लिये दे दिया जाये तो वह धन भी वापस नही आता है और जिसे धन दिया जाता है वह व्यक्ति या तो दुश्मनी पैदा कर लेता है या किसी न किसी प्रकार से बदनामी वाले कारण पैदा कर देता है।

वृश्चिक राशि

वृश्चिक राशि के लिये बुध मजबूत होने पर वरदान साबित होता है और कमजोर होने पर अघोरी बना देता है।इसका कारण भी यह माना जाता है कि बुध वृश्चिक राशि के लिये अष्टम का प्रभाव देता है जो अघोरी होने पर शमशानी कारणो को सामने लेकर आता है और जो भी बात इस राशि वाले जातक के द्वारा की जाती है वह केवल बिच्छू जैसे डंक मारने की नियत से की जाती है इन्ही कारणो से वृश्चिक राशि का जातक या तो बोली पहिचान मे खरा कहा जाता है या बोली के कारण ही उसे पहिचाना जाता है यही कारण उसके लिये आजीवन लाभ के लिये भी माने जाते है।

धनु राशि

धनु राशि के लिये बुध एक तो राज योग देने वाला होता है दूसरे वह सप्तम का मालिक होने से अगर वह स्त्री जातक है तो पति के रूप मे उसे भोला भाला मासूम पति ही प्राप्त होता है बुध का प्रभाव कभी अन्य ग्रहो के साथ होने पर अपना नही होता है वह वही फ़ल प्रदान करता है जिन ग्रहो के साथ साथ वह अपने गोचर से या जन्म के समय से होता है। बुध अगर शुक्र के साथ स्त्री जातक की कुंडली मे छठे भाव मे है तो वह जीवन साथी को किसी न किसी कारण से अन्य स्त्री सम्बन्धो से जोड कर रखता है और एक प्रकार से इस राशि वाले जातक के लिये अपने जीवन साथी के प्रति ही दिक्कत का कारण माना जाता है अगर शुक्र वकी है तो धनु राशि वाले जातक के लिये बुध का प्रभाव बहुत ही उल्टा हो जाता है वह वक्री शुक्र की सिफ़्त के अनुसार अपने जीवन को लेकर चलने वाला होता है और कभी तो वह पति पत्नी के सम्बन्धो मे चलना शुरु हो जाता है और कभी वह अपने को स्वतंत्र मानकर दूर के रिस्तो की तरफ़ अपना प्रभाव देने लगता है अक्सर इस कारण मे पति पत्नी का विवाद बढ जाता है और वह कोर्ट केश या इसी प्रकार के कारणो से स्त्री जातक है तो पति से मासिक आमदनी के अलावा और कुछ हासिल नही कर पाता है और वह पुरुष है तो वह आजीवन अपने जीवन की गृहस्थी अविश्वास के साथ जीने को मजबूर हो जाता है। धनु राशि के लिये बुध अक्सर पति पत्नी के सम्बन्धो मे नीरसता को इसलिये भी दे देता है क्योंकि बुध का प्रभाव यौन सम्बन्धो मे बेरुखी को भी देने वाला होता है।

मकर राशि

मकर राशि वालो के लिये बुध का प्रभाव सेवा जैसे कामो के लिये और कोर्ट केश आदि के कारणो मे वह आगे बढाने वाला होता है साथ ही बैंक बीमा बचत और नौकरी आदि के कामो के लिये वह अपनी स्थिति को इस राशि वालो के लिये फ़ायदा देने वाला होता है काम के समय मे अपनी पहिचान बनाना और गैत विद्या मे अपने को आगे लेकर चलना भी एक कारण माना जाता है अक्सर यह बुध जातक के जीवन साथी मे एक प्रकार की बोली बातचीत आदि से परेशान करने वाला भी माना जाता है और वह जीवन साथी को अक्सर ढोकर चलने वाली पोजीसन जैसे मानकर चलने वाला होता है। नवे भाव का स्वामी होने से जातक को नौकरी धन आदि के लिये या तो अपने पिता के स्थान को देखना होता है या अपने मित्रो बडे भाई के लाभ के साधनो से कमाने का कारण बनता है यही बात उसके लिये अपनी मानसिक स्थिति को समझने के लिये भी मानी जाती है वह अपने मानसिक कारणो मे उन्ही बातो को अधिक लेकर चलने वाला होता है जहां बातो का प्रभाव होता है जैसे किसी ने उसके प्रति क्या कहा है और वह कही जाने वाली बात कितनी उसके जीवन मे प्रभाव देने वाली है वह छोटी छोटी बातो को भी कभी कभी इतना तूल दे देता है कि जीवन एक प्रकार से अपनी पहिचान बनापाने के लिये उसे श्रम और अभाव से भी जूझना पडता है।

कुम्भ राशि

कुम्भ राशि वाले जातक अपनी बुद्धि को तभी विकसित कर पाते है जब वह बोलने चालने की कला मे अपने प्रभाव को प्रदर्शित करने वाले होते है अक्सर बुध का प्रभाव उनकी प्राथमिक शिक्षा पर पडना अधिक देखा जाता है अगर उनकी स्थिति घर मे छोटे भाई बहिन के रूप मे है तो वह अपने जीवन को अपनी बडी बहिन के पास बिताने के लिये या अपनी प्राथमिक शिक्षा को बहिन बुआ के अनुसार ही प्राप्त करने के लिये माना जाता है। अकर कर्जा दुश्मनी बीमारी के समय मे कुम्भ राशि वाले जातक अपने लिये कोई न कोई बुध का कारण ही बना लेते है। उनकी पहिचान भी एक प्रकार से उनकी बहिन बुआ बेटी के द्वारा ही मानी जाती है। अगर बुध मजबूत है तो उनकी संतान जो स्त्री सन्तान के रूप मे होती है वह घर की मर्यादा और जीवन के अन्दर तरक्की के क्षेत्र विकसित करने मे कामयाब हो जाती है और बुध कमजोर है तो वह गलत रास्ते मे जाकर सामाजिक मर्यादा और गुप्त सम्बन्धो के कारण अपनी पहिचान को बिगाडने के लिये भी उत्तरदायी बन जाता है। इसी प्रकार से अगर इस राशि वाले सेवा या नौकरी के क्षेत्र मे है तो उनके सम्बन्ध किसी न किसी प्रकार से उन लोगो से बन जाते है जो उनके लिये बीमारी या कर्जा या किसी प्रकार की दुश्मनी मे उनकी सहायता करते है या गाढे वक्त पर उनकी आर्थिक या सेवा वाली सहायता मे होते है।

मीन राशि

मीन राशि वाले जातक के लिये बुध एक प्रकार से वरदान दायक तब बन जाता है जब वे अपनी बोली और व्यवहार से रहने वाले क्षेत्र अपने घर और यात्रा आदि मे सम्भालने वाले काम के अन्दर केवल अपनी बोली का प्रयोग करते है और आदेश आदि के द्वारा काम करवाने की कला को प्रदर्शित करते है। अक्सर इस राशि वाले जातक तभी सफ़ल होते है जब उनके जीवन साथी का स्वभाव सेवाभावी होता है और उनके सामने आने वाले कर्जा दुश्मनी बीमारी और नौकरी आदि के क्षेत्र मे आने वाली समस्याओ को सुलझाने की कला जानने वाला जीवन साथी हो।  बुध की कमजोरी मे मीन राशि के जातक अक्सर अपने जीवन साथी के व्यवहार से दुखी होते है घर मकान माता और घर के सदस्यों की छींटाकसी से भी परेशान होते देखे गये है। 

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आचार्य पीयूष वशिष्ठ
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LORD GANESH ANUSTHAN FOR BUSINESS IMPROVEMENT

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व्यवसायवृद्धिकारक गणपति अनुष्ठान


व्यवसाय में फ़लदायी गणपति अनुष्ठान

‘श्री लक्ष्मी गणेश मंत्र’ मानव जीवन के घटनाचक्र को जानने एवं पूर्वानुमान की प्रक्रिया बतलाने वाले महर्षि पाराशर ने व्यापार एवं आर्थिक स्थिति का विचार बड़े ही तर्कसंगत ढंग से किया है। उनका मानना है कि जन्मकुंडली में लग्न, पंचम एवं नवम भाव लक्ष्मी के स्थान होने के कारण धनदायक होते हैं यथा -
‘लक्ष्मीस्थानं त्रिकोणं स्यात्’ तथा
‘प्रथमं नवमं चैव धनमित्युच्यते बुधै:’।

कुंडली में चतुर्थ एवं दशम स्थान इच्छाशक्ति एवं कर्मठता के सूचक होने के कारण धन कमाने में सहायक होते हैं। दूसरी ओर षष्ठ, अष्टम एवं व्यय भाव, जो कर्ज, अनिष्ट एवं हानि के सूचक हैं, व्यापार में हानि और परेशानी देने वाले होते हैं।

कारोबार में परेशानी सूचक योग

महर्षि पाराशर ने अपनी कालजयी रचना ‘मध्यपाराशरी’ में व्यापार में हानि एवं परेशानी के सूचक निम्न योग बताए हैं-
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  • लग्नेश षष्ठभाव में और षष्ठेश लग्न या सप्तम भाव में हो तथा वह मारकेश से दृष्ट हो।
  • लग्नेश एवं चंद्रमा, दोनों केतु के साथ हों और मारकेश से युत या दृष्ट हों।
  • लग्नेश पाप ग्रह के साथ छठे, आठवें या 12 वें स्थान में मौजूद हो।
  • पंचमेश एवं नवमेश षष्ठ या अष्टम भाव में हों।
  • लग्नेश, पंचमेश या नवमेश का त्रिकेश के साथ परिवर्तन हो।
  • लग्नेश जिस नवांश में हो, उसका स्वामी त्रिक स्थान में मारकेश के साथ हो।
  • कुंडली में भाग्येश ही अष्टमेश या पंचमेश ही षष्ठेश हो और वह व्ययेश से युत या दृष्ट हो।
  • जातक की कुंडली में केमद्रुम, रेका, दरिद्री, या भिक्षुक योग हो।

परेशानी से बचने का उपाय

वैदिक चिंतनधारा में व्यक्ति के विचार एवं निर्णयों को विकृत करने वाला तत्व ‘विघ्न’ तथा उसके काम-धंधे में रुकावटें डालने वाला तत्व बाधा कहलाता है। इन विघ्न-बाधाओं को दूर करने की क्षमता भगवान श्रीगणोश जी में है। मां लक्ष्मी तो स्वभाव से ही धन, संपत्ति एवं वैभव स्वरूपा हैं, इसीलिए व्यापार एवं काम-धंधे में आने वाली विघ्न-बाधाओं को दूर कर धन-संपत्ति प्राप्त करने के लिए श्रीलक्ष्मी गणोशजी के पूजन की परंपरा हमारे यहां आदिकाल से है।

श्री लक्ष्मीविनायक मंत्र :

ऊं श्रीं गं सौम्याय गणपतये वरवरद सर्वजनं मे वशमानय स्वाहा।

विनियोग :

ऊं अस्य श्री लक्ष्मी विनायक मंत्रस्य अंतर्यामी ऋषि:गायत्री छन्द: श्री लक्ष्मी विनायको देवता श्रीं बीजं स्वाहा शक्ति: सर्वाभीष्ट सिद्धये जपे विनियोग:।

करन्यास - अंगन्यास

ऊं श्रीं गां अंगुष्ठाभ्यां नम:। - ऊं श्रीं गां हृदयाय नम:।
ऊं श्रीं गीं तर्जनीभ्यां नम:। - ऊं श्रीं गीं शिरसे स्वाहा।
ऊं श्रीं गूं मध्यमाभ्यां नम:। - ऊं श्रीं गूं शिखायै वषट्।
ऊं श्रीं गैं अनामिकाभ्यां नम:। - ऊं श्रीं गैं कवचाय हुम्।
ऊं श्रीं गौं कनिष्ठकाभ्यां नम:। - ऊं श्रीं गौं नेत्रत्रयाय वौषट्।
ऊं श्रीं ग: करतलकरपृष्ठाभ्यां नम:। ऊं श्रीं ग: अस्त्रायं फट्।

ध्यान

दन्ताभये चक्रदरौदधानं कराग्रगस्वर्णघटं त्रिनेत्रम्।
धृताब्जयालिंगितमब्धिपु˜या लक्ष्मीगणोशं कनकाभमीडे ।।

विधि

नित्य नियम से निवृत्त होकर आसन पर पूर्वाभिमुख या उत्तराभिमुख बैठकर आचमन एवं प्राणायाम कर श्रीलक्ष्मी विनायक मंत्र के अनुष्ठान का संकल्प करना चाहिए। तत्पश्चात चौकी या पटरे पर लाल कपड़ा बिछाएं। भोजपत्र/रजत पत्र पर असृगंध एवं चमेली की कलम से लिखित इस लक्ष्मी विनायक मंत्र पर पंचोपचार या षोडशोपचार से भगवान लक्ष्मी गणोश जी का पूजन करना चाहिए। इसके बाद विधिवत विनियोग, न्यास एवं ध्यान कर एकाग्रतापूर्वक मंत्र का जप करना चाहिए। इस अनुष्ठान में जपसंख्या सवा लाख से चार लाख तक है।

अनुष्ठान के नियम

  • साधक स्नान कर रेशमी वस्त्र धारण करे। भस्म का त्रिपुंड या तिलक लगाकर रुद्राक्ष या लाल चंदन की माला पर जप करना चाहिए। इस जप को परेशानियों का नाश करने वाला माना गया है।
  • पूजन में लाल चंदन, दूर्वा, रक्तकनेर, कमल के पुष्प, मोदक एवं पंचमेवा अर्पित किए जाते हैं।
  • भक्ति भाव से पूजन, मनोयोगपूर्वक जप एवं श्रद्धा सहित हवन करने से सभी कामनाएं पूरी होती हैं।
  • अनुष्ठान के दिनों में गणपत्यथर्वशीर्षसूक्त, श्रीसूक्त, लक्ष्मीसूक्त कनकधारास्तोत्र आदि का पाठ करना फलदायक है।



यदि आप भी एक साधक है और इस अनुष्ठान के सम्बन्ध में या किसी अन्य अनुष्ठान के सम्बन्ध में किसी प्रकार का शंका समाधान करना चाहते है तो हमसे फ़ोन द्वारा संपर्क कर सकते है!
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Tuesday 28 January 2014

astrology and disease

ग्रह और बीमारियाँ 



ग्रह और बीमारियाँ -ग्रह जब भ्रमण करते हुए संवेदनशील राशियों के अंगों से होकर गुजरता है तो वह उनको नुकसान पहुंचाता है। नकारात्मक ग्रहों के प्रभाव को ध्यान में रखकर आप अपने भविष्य को सुखद बना सकते हैं।

वैदिक वाक्य है कि पिछले जन्म में किया हुआ पाप इस जन्म में रोग के रूप में सामने आता है। शास्त्रों में बताया है-पूर्व जन्मकृतं पापं व्याधिरूपेण जायते अत: पाप जितना कम करेंगे, रोग उतने ही कम होंगे। अग्नि, पृथ्वी, जल, आकाश और वायु इन्हीं पांच तत्वों से यह नश्वर शरीर निर्मित हुआ है। यही पांच तत्व 360 की राशियों का समूह है।
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इन्हीं में मेष, सिंह और धनु अग्नि तत्व, वृष, कन्या और मकर पृथ्वी तत्व, मिथुन, तुला और कुंभ वायु तत्व तथा कर्क, वृश्चिक और मीन जल तत्व का प्रतिनिधित्व करते हैं। कालपुरुष की कुंडली में मेष का स्थान मस्तक, वृष का मुख, मिथुन का कंधे और छाती तथा कर्क का हृदय पर निवास है जबकि सिंह का उदर (पेट), कन्या का कमर, तुला का पेडू और वृश्चिक राशि का निवास लिंग प्रदेश है। धनु राशि तथा मीन का पगतल और अंगुलियों पर वास है।
इन्हीं बारह राशियों को बारह भाव के नाम से जाना जाता है। इन भावों के द्वारा क्रमश: शरीर, धन, भाई, माता, पुत्र, ऋण-रोग, पत्नी, आयु, धर्म, कर्म, आय और व्यय का चक्र मानव के जीवन में चलता रहता है। इसमें जो राशि शरीर के जिस अंग का प्रतिनिधित्व करती है, उसी राशि में बैठे ग्रहों के प्रभाव के अनुसार रोग की उत्पत्ति होती है। कुंडली में बैठे ग्रहों के अनुसार किसी भी जातक के रोग के बारे में जानकारी हासिल कर सकते हैं।
कोई भी ग्रह जब भ्रमण करते हुए संवेदनशील राशियों के अंगों से होकर गुजरता है तो वह उन अंगों को नुकसान पहुंचाता है। जैसे आज कल सिंह राशि में शनि और मंगल चल रहे हैं तो मीन लग्न मकर और कन्या लग्न में पैदा लोगों के लिए यह समय स्वास्थ्य की दृष्टि से अच्छा नहीं कहा जा सकता।
अब सिंह राशि कालपुरुष की कुंडली में हृदय, पेट (उदर) के क्षेत्र पर वास करती है तो इन लग्नों में पैदा लोगों को हृदयघात और पेट से संबंधित बीमारियों का खतरा बना रहेगा। इसी प्रकार कुंडली में यदि सूर्य के साथ पापग्रह शनि या राहु आदि बैठे हों तो जातक में विटामिन ए की कमी रहती है। साथ ही विटामिन सी की कमी रहती है जिससे आंखें और हड्डियों की बीमारी का भय रहता है।
चंद्र और शुक्र के साथ जब भी पाप ग्रहों का संबंध होगा तो जलीय रोग जैसे शुगर, मूत्र विकार और स्नायुमंडल जनित बीमारियां होती है। मंगल शरीर में रक्त का स्वामी है। यदि ये नीच राशिगत, शनि और अन्य पाप ग्रहों से ग्रसित हैं तो व्यक्ति को रक्तविकार और कैंसर जैसी बीमारियां होती हैं। यदि इनके साथ चंद्रमा भी हो जाए तो महिलाओं को माहवारी की समस्या रहती है जबकि बुध का कुंडली में अशुभ प्रभाव चर्मरोग देता है।
चंद्रमा का पापयुक्त होना और शुक्र का संबंध व्यसनी एवं गुप्त रोगी बनाता है। शनि का संबंध हो तो नशाखोरी की लत पड़ती है। इसलिए कुंडली में बैठे ग्रहों का विवेचन करके आप अपने शरीर को निरोगी रख सकते हैं। किंतु इसके लिए सच्चरित्रता आवश्यक है। आरंभ से ही नकारात्मक ग्रहों के प्रभाव को ध्यान में रखकर आप अपने भविष्य को सुखद बना सकते हैं।

यदि आप भी किसी रोग  से पीड़ित है और इससे रहत का  का उपाय जानना चाहते है तो फ़ोन द्वारा संपर्क कर सकते है
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कोर्ट केस और ज्योतिष

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कोर्ट केस और ज्योतिष

अक्सर मनुष्य को अपने कारणो से न्याय के लिये जाना पडता है,न्याय भी प्रकृति के अनुसार ही मिलता है,अगर किसी को न्यायालय न्याय नही दे पाता है तो प्रकृति अपने द्वारा उसे सजा देती है,लेकिन किसी प्रकार का छल या फ़रेब करने के बाद न्याय ले लिया जावे तो वह न्याय नही बेईमानी कही जाती है,प्रकृति ने न्याय के लिये जिन कारकों को नियुक्त किया है वे इस प्रकार से हैं

लगन वादी है

कुन्डली या प्रश्न कुन्डली में लगन वादी होती है और वह वाद कुन्डली में लगनेश के स्थान से पता किया जाता है,लगनेश पर कब खराब या अच्छे ग्रह फ़रक डाल रहे होते है,जो ग्रह अपने असर से खराब असर देता है वही कारण न्यायालय में जाने का होता है।

सप्तम स्थान प्रतिवादी का है

लगन से या प्रश्न कुन्डली से सप्तम स्थान प्रतिवादी का होता है,अगर सप्तमेश किसी प्रकार से शक्तिशाली होता है तो प्रतिवादी की जीत होती है,और कमजोर रहने पर वह हार जाता है और वादी की जीत हो जाती है,सप्तमेश का असर जिन जिन राशियों या ग्रहों पर होता है वहीं पर प्रतिवादी अपना खराब असर देता है।

शनि केतु दोनो मिलकर वकील बनते है

न्यायालय में जाने के लिये वकील की जरूरत पडती है,शनि और केतु अगर अगर माफ़िक है तो वकील ठीक मिलता है,और शनि केतु ठीक नही है तो वकील भी परेशान करते है।

शनि न्यायालय का रूप बताता है

जन्म कुन्डली या प्रश्न कुन्डली से शनि का स्थान देखकर ही पता किया जाता है कि न्यायालय का क्षेत्र कैसा है,उच्च न्यायालय के लिये शनि की उच्चता और नीचे के न्यायालयों के लिये शनि के निम्न भावों में स्थिति देखकर पता किया जाता है।

जज गुरु होता है

जन्म कुन्डली की या प्रश्न कुन्डली की स्थिति को देखकर पता किया जाता है कि गुरु किस भाव में है और गुरु पर किस किस ग्रह का असर जा रहा है,गुरु के ऊपर जिस ग्रह की नजर होती है जज उसी प्रकार का न्याय देता है,और गुरु जिस ग्रह को अपना असर देता ग्रह को उसी प्रकार से न्याय लिखना पडता है।

शनि बुध इतिहासिक न्याय कर्ता है

कुन्डली में अगर किसी प्रकार से शनि और बुध की युति से न्याय लिखा जाता है तो वह इतिहासिक न्याय कहा जाता है,और उस न्याय के द्वारा अन्य लोगों को न्याय देने के लिये वकील या जज उस दिये गये न्याय का हवाला अदालत में देते हैं।

न्याय मिलने की अवधि शनि तय करता है

कर्म और फ़ल का दाता शनि न्याय के समय को निश्चित करता है,राहु वादी प्रतिवादी को भ्रमित करने के बाद न्यायालय में घुमाते रहते है,और वकील के लिये कमाई का साधन राहु ही करवाता है।

राहु का कार्य दो को लडाकर दूर बैठकर तमाशा देखना है

दो व्यक्तियों को चुगली के द्वारा या अन्य कारण से राहु भ्रम में डाल देता है,उन भ्रमों के कारण दोनो एक दूसरे से पूंछे बिना ही या किसी प्रकार की राहु की हरकत से ग्रसित होकर एक दूसरे के जान के दुश्मन बन जाते है,और कोर्ट केश या थाने अदालत के चक्कर लगा लगा कर बरबाद हुआ करते है।

शनि राहु की युति और मंगल की द्रिष्टि जेलखाना है

कुन्डली में शनि राहु की युति को अगर मंगल देखता है तो जेलखाना या नजरबंदी कहा जाता है,लेकिन किसी प्रकार की गुरु या सूर्य की युति जेलखाने के भाव को बदल कर रेलगाडी या वाहन की चलती फ़िरती केटरिंग में बद्ल देते है,यह भाव किसी प्रकार से केतु की उच्चता में गाडियों की रिपेयरिंग का स्थान भी बन जाता है।

द्वितीयेश धन तृतीयेश चैक षष्ठेश बैंक है

दूसरे भाव का मालिक नगद धन का मालिक है तीसरे भाव का मालिक चैक है और छठे भाव का मालिक बैंक है,तीसरे भाव को अगर अच्छा ग्रह देख रहा है तो चैक पास हो जाता है,और अगर कोई गलत ग्रह देख रहा है तो वह चैक अनादरित हो जाता है,उसी प्रकार से दूसरे भाव का मालिक अगर कमजोर है तो बैंक में धन नही है और चैक के द्वारा गलत तरीके से भुगतान किया जा रहा है,तीसरे भाव को राहु के देखने पर झूठा चैक दिया जा रहा है।

नवें भाव का राहु प्रतिवादी को झूठ बुलवाता है

नवां भाव प्रतिवादी के लिये तीसरा भाव बन जाता है,और राहु की सिफ़्त झूठ बोलने की होती है,इसलिये प्रतिवादी के अन्दर झूठ बोलने की कला आ जाती है,लेकिन गुरु अगर राहु के साथ है तो गुरुचान्डाल योग बनने से जज को झूठी बात पर भी यकीन हो जाता है और फ़ैसले में झूठे व्यक्ति का फ़ायदा हो जाता है,लेकिन राहु के गोचर में मंगल के साथ पहुंचते ही झूठ से पर्दा उठ जाता है,तथा झूठे तरीके से जीते गये केश का असर अचानक मौत या किसी प्रकार के भयंकर हादसे के रूप में सामने आता है,अथवा झूठी बात या गवाही देने वाले के लिये किसी न मिटने वाली बीमारी के पैदा होने के कारण उसे पूरी सजा जो मिलनी थी वह मिलती है,तथा जो नुकसान झूठी बात या गवाही देने के कारण वादी को हुआ था उसे किसी अन्य मद के जरिये उसकी क्षति पूर्ति हो जाती है,यही प्रकृति का न्याय बोला है,और जज को हर फ़ैसले में Natural Law के बारे में सोचना पडता है।

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Saturday 11 January 2014

Astrology Remedies For Vastu Problems

Vastu Shastra Remedies

Astrology Remedies For Vastu Problems

वास्तु के कुछ महत्वपूर्ण तथ्य एवं बिना तोडफोड के दोष निवारण

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आज के जमाने में वास्तु शास्त्र के आधार पर स्वयं भवन का निर्माण करना बेशक आसान व सरल लगता हो, लेकिन पूर्व निर्मित भवन में बिना किसी तोड फोड किए वास्तु सिद्धान्तों को लागू करना जहाँ बेहद मुश्किल हैं, वहाँ वह प्रयोगात्मक भी नहीं लगता. अब व्यक्ति सोचता है कि अगर भवन में किसी प्रकार का वास्तु दोष है, लेकिन उस निर्माण को तोडना आर्थिक अथवा अन्य किसी दृ्ष्टिकोण से संभव भी नहीं है, तो उस समय कौन से ऎसे उपाय किए जाएं कि उसे वास्तुदोष जनित कष्टों से मुक्ति मिल सके. आज की इस पोस्ट में प्रस्तुत हैं कुछ ऎसे उपाय, जिन्हे अपनाकर आप किसी भी प्रकार के वास्तुजनित दोषों से बहुत हद तक बचाव कर सकते हैं.
(peeyushvashisth.com)

* 4 X 4 इन्च का ताम्र धातु में निर्मित वास्तु दोष निवारण यन्त्र भवन के मुख्य द्वार पर लगाना चाहिए.

* भवन के मुख्य द्वार के ऊपर की दीवार पर बीच में गणेश जी की प्रतिमा, अन्दर और बाहर की तरफ, एक जगह पर आगे-पीछे लगाएं.

*वास्तु के अनुसार सुबह पूजा-स्थल (ईशान कोण) में श्री सूक्त, पुरूष सूक्त एवं संध्या समय श्री हनुमान चालीसा का नित्यप्रति पठन करने से भी शांति प्राप्त होती है.

*यदि भवन में जल का बहाव गलत दिशा में हो, या पानी की सप्लाई ठीक दिशा में नहीं है, तो उत्तर-पूर्व में कोई फाऊन्टेन (फौव्वारा) इत्यादि लगाएं. इससे भवन में जल संबंधी दोष दूर हो जाएगा.

* टी. वी. एंटीना/ डिश वगैरह ईशान या पूर्व की ओर न लगाकर नैऋत्य कोण में लगाएं, अगर भवन का कोई भाग ईशान से ऊँचा है, तो उसका भी दोष निवारण हो जाएगा.

* भवन या व्यापारिक संस्थान में कभी भी ग्रेनाईट पत्थर का उपयोग न करें. ग्रेनाईट चुम्बकीय प्रभाव में व्यवधान उत्पन कर नकारात्मक उर्जा का संचार करता है.

* भूखंड के ब्रह्म स्थल (केन्द्र स्थान) में ताम्र धातु निर्मित एक पिरामिड दबाएं .

* जब भी जल का सेवन करें, सदैव अपना मुख उत्तर-पूर्व की दिशा की ओर ही रखें.

* भोजन करते समय, थाली दक्षिण-पूर्व की ओर रखें और पूर्व की ओर मुख कर के ही भोजन करें.

* दक्षिण-पश्चिम कोण में दक्षिण की ओर सिराहना कर के सोने से नींद गहरी और अच्छी आती है. यदि दक्षिण की ओर सिर करना संभव न हो तो पूर्व दिशा की ओर भी कर सकते हैं.

* यदि भवन की उत्तर-पूर्व दिशा का फर्श दक्षिण-पश्चिम में बने फर्श से ऊँचा हो तो दक्षिण-पश्चिम में फ़र्श को ऊँचा करें.यदि ऎसा करना संभव न हो तो पश्चिम दिशा के कोणे में एक छोटा सा चबूतरा टाईप का बना सकते हैं.astrologer in jaipur
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